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नवरात्रि में विधिवत नव कन्या पूजन

राची, झारखण्ड  | अप्रैल |  05, 2025 ::

देवी मंडप हेसाग मंदिर के मुख्य संरक्षक दुर्गेश यादव ने कहा कि नवरात्र में विधिवत्त नव कन्या का पूजन किया गया, नवरात्र में कुमारी कन्या के पूजन से मातारानी प्रसन्न होती हैं एवं भक्तों को विशेष कृपा प्राप्त होती है,

नवरात्र की पूजा में कुमारी कन्या के पूजन का विधान शास्त्रों में बताया गया है. श्रीमदेवीभागवत के अनुसार, इस अवधि मे कुमारी कन्या के पूजन से मातारानी प्रसन्न होती हैं. कुमारी कन्या के पूजन में 2 वर्ष से लेकर 9 वर्ष तक की कन्या के पूजन का विधान है.प्रतिदिन एक ही कन्या की पूजा की जा सकती है या सामर्थय के अनुसार तिथिवार संख्या के अनुसार कन्या की संख्या बढाई जा सकती हैं यानी जैसे-जैसे तिथि आगे बढ़े, वैसे-वैसे कन्या की संख्या बढाते रहना चाहिए, इसके अलावा ज्यादा सामर्थ्य है, तो प्रतिदिन दोगुनी या तिगुनी संख्या भी की जा सकती है. शास्त्रों में कहा गया है कि जितने अधिक लोगों के हितार्थ पूजा की जाती है, उसी के अनुसार दैवी कृपा भी मिलती है. पूजा में संकुचित दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए. कुमारी पूजा के क्रम में श्रीमदेवीभागवत के प्रथम खंड के तृतीय स्कंध में उल्लेखित है कि 2 वर्ष की कन्या “कुमारी’ कही गयी है, जिसके पूजन से दुख-दरद्रता का नाश, शत्रुओं का क्षय और धन, आयु, एवं बल की वृद्धि होती है, इसी प्रकार 3 वर्ष की कन्या ‘त्रिमर्तिं’ कही गयी है, जिसकी पूजा से धर्म,अर्थं, काम की पूर्ति, धन-धान्य का आगमन और पुत्र-पौत्र की वृद्धि होती है. जबकि 4 वर्ष की कन्या ‘कल्याणी’ होती है, जिसकी पूजा से विद्या, विजय, राज्य तथा सुख की प्राप्ति होती है

राज्य पद पर आसीन उपासक ‘कल्याणी’ की पूजा करें. इसी तरह 5 वर्ष की कन्या ‘कालिका’ होती है, जिसकी पूजा से शत्रुओं का नाश तथा 6 वर्ष की कन्या “चंडिका’ होती है, जिसकी पूजा से धन तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. 7 वर्ष की कन्या ‘शाम्भवी’ है, जिसकी पूजा से दुख-दारिद्रता का नाश, संग्राम एवं विविध विवादों में विजय मिलता है. जबकि 8 वर्ष की कन्या ‘दुर्गी’ के पूजन से इहलोक के ऐश्वर्य के साथ परलोक में उत्तम गति मिलती है और कठोर साधना करने में सफलता मिलती है. इसी क्रम में सभी मनोरथों के लिए 9 वर्ष की कन्या को ‘सुभद्रा”‘ और जटिल रोग के नाश के लिए 10 वर्ष की कन्या को ‘रोहिणी’ स्वरूप मानकर पूजा करनी चाहिए.

धर्मग्रंथों में देवी को अलग-अलग तिथियों में

अलग-अलग भोज्य पदार्थ का भोग लगाना चाहिए. प्रतिपदा को गाय का घी भोंग लगाने से रोग मुक्ति, द्वितीया को चीनी का भोग लगाने से दीर्घायु , तृतीया को दूध का भोग लगाने से दुखों से मुक्ति, चतुथीं को मालपुआ से हर तरह की विपत्तियों से छुटकारा, पंचमी को केला के भोग से बौद्धिक क्षमता में वृद्धि , षष्ठी को मधु (शहद) से सुंदर स्वरूप की प्राप्ति, सप्तमी को गुड़ का भोग लगाने से शोक और तनाव से मुक्ति, अष्टमी को नारियल के भोग से अवसाद तथा आत्मग्लानि से मुक्ति और नवमी को धान का लावा चढ़ाने से लोक-परलोक सुखकर होता है. इसलिए नवरात्र में उक्त विधि-विधान से पूजा का पालन श्रेयस्कर है.

 

मौके पर सोनी सिन्हा, विमलेश सिंह ,दुर्गेश यादव, कृष्णा, सुनीता देवी ,बेबी देवी, श्रेया , काव्या, सुमन देवी, आकांक्षा सिंह, मनोज पांडे ,गौतम गुप्ता, रोशन पांडे ,आदेश पांडे, गौरव गुप्ता, कौलेश्वर कुमार ,रामदेव सिन्हा समेत सभी माता रानी के भक्तजन उपस्थित रहे..

 

 

 

 

 

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