रांची, झारखण्ड । मई | 01, 2017 :: रिम्स के गेट नंबर एक पार्किग मे शाम को आठ से नौ बजे रिम्स के मरीज के सहयोगियो की कतार आपको दिखेगी , जैसे रोटी बैक के लोग अपनी वाहन से खीर , रोटी , खिचडी ,पुरी पुराने कपडे लेकर आते है ,सभी लोग पंक्ति बद्ध हो जाते है, अपने साथ लाए बर्तन मे लोग खुद और अपने परिजनो के लिऐ भोजन लेकर खाते भी है और ले भी जाते है, भोजन की मीनू बदलती रहती है, भोजन लेकर रोज बांटने वाले मगँल और धनराज से लाभार्थियो का एक रिश्ता सा हो गया है, यदि भोजन लाने मे देर हो जाऐ तो लाभार्थी फोन भी कर लेते है, परिस्थिति बस यदि एक ही तरह का भोजन आने लगा तो लाभार्थी मीनू बदलकर भोजन की माँग भी करते है, कभी लड्डू कभी खीर, पुरी सब्जी, पुआ, ढुसका भी चलाया गया,झारखंड और पडोस के राज्यो से आऐ लगभग दो सो लोग लगातार रोटी भोजन और कपडा यहाँ से लेकर खुश हो रहे है , यह भोजन रिम्स के इमर्जेंसी गेट के सामने नो से साढे नो बजे रात हनुमान मन्दिर के पास भी बटता है ,
घर मे बनाते है भोजन –
रांची रोटी कपडा बैक की शुरूआत पँड़ित रामदेव पाण्डेय ने अपने सहयोगियो के साथ शुरु किया है , ये अपने घर पर शुध्द शाकाहारी भोजन बनवाते है,इसमे लहसुन, प्याज, बैगन, मसुर दाल नही डाला जाता है, यह भोजन स्वयं के मन्दिर मे भोग लगाते है तब यह भोजन रिम्स बटने के लिऐ आता है,यह भोजन रोगी भी खाते है, भोजन बनाने मे भी चैरिटी का काम है, पण्डित जी दो गरीब मेधावी बच्चो को रखकर पढाते भी ये कालेज मे पढते है और चैरिटी का काम भी करते है इसमे घर वालो का भी सहयोग रहता है, दोना प्लेट सखुआ पता का लिया जाता है ताकि वनवासियो को भी रोजगार मिले , इन्हे इनके सहयोगियो से यदा कदा सहयोग हो जाता है , यह प्रेरित करते है की लोग अपनी आमदनी का कुछ भाग दान करे ,जन्मदिन , पहली नोकरी ,स्मृति दिवस ,आदि पर लोग ऐसा सहयोग कर सकते है , वे पैकेट बन्द कच्चा सामान , भोजन ,फल भी आकर दे सकते है , 8877003232 वडसप न पर फोन या वडसप कर जूड सकते है ,
रिम्स ही क्यो ?
जब हमने रामदेव जी से पूछा कि रिम्स ही क्यो चुना सेवा के लिऐ तो उन्होंन ने कहा कि यहाँ आने वाले अस्थाई ,गरीब और परेशान लोग है ,अचानक रिम्स आना होता है ,तब ये कोई तैयारी से नही आ पाते और यहाँ कभी कभी सप्ताह तो महिना गुजारना पडता है ,कई लोग तो शाकाहारी होते है ,कई दो तीन परिजन साथ रहते है जब बच्चा या बुढा रोगी होते है , ये शहर के अतिथि होते है आपके राजधानी मे होते है , आपके घर और शहर मे कोई भूखा रह जाऐ तो ये अच्छी बात नही है , लोग वृद्धाश्रम और अन्य मिशनरियो मे जाकर दान करते है वो तो ठीक है ,पर वहाँ सरकार ,मिशनरी और स्वयं की बहुत सुविधा होती है ,वृद्धाश्रम मे कई ऐसे लोग है जो पेन्सन हजारो मे पाते है , पर यहाँ हम पूरी तरह नारायण के नर की सेवा करते है , यहाँ दो साल से सतर शासाल के लोग भी नया पुराना कपडा खाना का लाभ लेते है और एक इनके भाग्य से ही आता है ,शहर के हर घर के लोग चाहे कि हम एक और आदमी का शहर के अतिथि या गरीब का पेट भरे तो रोज दो या पाँच रूपये बचाने से गरीबो को सहयोग और दाता को सुख ,गौरव , समृद्धि भी मिलेगी ,
सरकारी सहयोग –
हमने सरकारी सहयोग के बारे मे रामदेव जी से पूछा तो उन्होने बताया कि कुछ मित्रो ने सलाह दी कि सरकारी सहयोग मिलेगा एक सोसाइटी बना लिजीऐ मैने बनाया भी माँ बगलामुखी ब्रह्म विद्या संस्थान सोसाइटी अभी निबन्धन भी कराया ,पर मैने स्वास्थ्य मँत्री ,रिम्स के निदेशक ,स्वास्थ्य सचिव से मिलकर एक जगह कमरा उपलब्ध कराने की आवेदन भी किया पर दो महिने बाद भी कोई सहयोगात्मक रवैया नही दिख रहा है ,यदि सहयोग आम जन और सरकार से मिले तो रांची के होटल और पार्टी समारोह मे बहुत भोजन बर्बाद होते है वैसे साफ सुथरे भोजन को इकठ्ठा कर हम रिम्स और सदर अस्पताल के गरीब रोगी के सहयोगी या अन्य भूखे लोगो को भोजन कपडा दे सकते है , यही प्रयास भी भविष्य मे रहेगा ,
क्या कहते है लाभुक
बगोदर से आए इस्लाम कहते है कि इतो घर जैसन खाऐ के गरम गरम मिलो रहल हव , हम भी खाहि और मरिजो के देहिऐ एक बजी बेटा के लेके आलहलियो अबरी भाई के ,
लातेहार की सुगनी कहती है बडी बेस है भइया सब खाना खिलाव हथी ,खीर ,पुरी भी ,
दादी के नाम चर्चित दो वृद्ध आदिवासी महिला कहती है कि हमनी रोजे इ छ उवा मन से बेस बेस खाली , लुगा, सारी , गर्म लुगा लेली भी, आउर रऊरा मन के बाइट आइली ,