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हिंदी दिवस: भाषा की धरोहर का उत्सव :: डॉ दीपक प्रसाद

14 सितंबर का दिन हर वर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो हिंदी भाषा की समृद्धि, महत्ता और इसकी सांस्कृतिक धरोहर को सम्मानित करने का अवसर प्रदान करता है। यह दिन विशेष रूप से हमारे संविधान द्वारा हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किए जाने की याद दिलाता है।

हिंदी दिवस का इतिहास

14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने हिंदी को देवनागरी लिपि में भारत की राजभाषा के रूप में अपनाया था। इस निर्णय के पीछे हिंदी के प्रचलन और इसके सरलता के गुणों को प्रमुखता दी गई। इसके साथ ही, राष्ट्र की एकता और अखंडता के प्रतीक के रूप में हिंदी को स्थापित किया गया। इसके बाद से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा, ताकि हिंदी भाषा के प्रति जागरूकता और इसका महत्व और बढ़ सके।

हिंदी की विशेषताएँ

हिंदी भारत के हृदय की भाषा मानी जाती है। यह केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, सभ्यता और भावनाओं का प्रतिबिंब भी है। हिंदी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह आम जनमानस से जुड़ी भाषा है, जो देश के विभिन्न हिस्सों को आपस में जोड़ने का कार्य करती है। हिंदी साहित्य का भी अद्वितीय योगदान है, जिसमें प्रेमचंद, निराला, महादेवी वर्मा जैसे साहित्यकारों की रचनाओं ने इसका मान बढ़ाया।

वर्तमान में हिंदी की स्थिति

वैश्वीकरण और तकनीकी युग के इस दौर में, हिंदी ने भी खुद को नए रूप में ढाल लिया है। इंटरनेट, सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल मंचों पर हिंदी का व्यापक प्रयोग हो रहा है। इसके साथ ही हिंदी में फिल्मों, साहित्य और मीडिया का योगदान भी इसे लगातार समृद्ध बना रहा है। हालाँकि, अंग्रेज़ी के बढ़ते प्रभाव और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के कारण हिंदी के सामने कई चुनौतियाँ भी हैं।

हिंदी दिवस का महत्व

हिंदी दिवस हमें हमारी मातृभाषा और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और इसे आगे बढ़ाने का संदेश देता है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपनी भाषा पर गर्व होना चाहिए और इसे अगली पीढ़ियों तक पहुँचाने का जिम्मा भी हमारा है। इसके साथ ही, हिंदी दिवस उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो हिंदी को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करने के लिए कार्यरत हैं।
हिंदी दिवस केवल एक उत्सव नहीं है, यह हमारी सांस्कृतिक पहचान और आत्मसम्मान का प्रतीक है। हिंदी भाषा के प्रति हमारा सम्मान और इसे प्रोत्साहन देने का प्रयास हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखता है। हिंदी हमारी संस्कृति की एक महत्वपूर्ण कड़ी है और इसे संरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है।
हिंदी दिवस पर कई प्रमुख हिंदी के विद्वानों, लेखकों, और साहित्यकारों ने हिंदी भाषा के महत्व, उसकी समृद्धि और भविष्य को लेकर अपने विचार प्रकट किए हैं।
1. डॉ. राम मनोहर लोहिया
“अंग्रेजी हटाओ, हिंदी अपनाओ” के नारे के साथ लोहिया जी ने हिंदी के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह भारत के आम जनमानस की पहचान है। उनका मानना था कि हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाना देश की एकता के लिए आवश्यक है।
2. डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा था, “हिंदी जन-जन की भाषा है। यह न केवल संचार का साधन है, बल्कि यह हमारे संस्कारों, हमारी संस्कृति और हमारी भावनाओं को व्यक्त करने का प्रमुख माध्यम है।” उन्होंने हिंदी की अभिव्यक्ति क्षमता और इसके व्यापक दायरे पर बल दिया।
3. महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा ने कहा था, “हिंदी भाषा का विकास और विस्तार केवल शासन द्वारा नहीं हो सकता, इसके लिए हमें इसे अपने दैनिक जीवन में आत्मसात करना होगा।” उनका मानना था कि हिंदी का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि लोग इसे दिल से अपनाएं और अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए इसका प्रयोग करें।
4. प्रेमचंद
हिंदी साहित्य के महान लेखक प्रेमचंद ने कहा था, “हिंदी की सबसे बड़ी शक्ति इसकी सरलता और सहजता है।” उन्होंने हिंदी को आम जनमानस की भाषा बताया, जो ग्रामीण और शहरी दोनों जीवन में समान रूप से प्रचलित है। प्रेमचंद का यह भी मानना था कि हिंदी साहित्य में सामाजिक मुद्दों को उठाने की जबरदस्त क्षमता है।
5. डॉ. राजेंद्र प्रसाद
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, “हिंदी का विकास केवल उसके बोलने वालों की संख्या पर निर्भर नहीं करता, बल्कि उन लोगों पर निर्भर करता है जो इसके विकास के लिए सचेत रूप से काम कर रहे हैं।” उनका मानना था कि हिंदी का विकास तभी संभव है जब हम सभी मिलकर इसे आगे बढ़ाने में योगदान दें।
6. डॉ. नामवर सिंह
हिंदी आलोचना के प्रमुख हस्ताक्षर डॉ. नामवर सिंह ने कहा था, “हिंदी दिवस केवल औपचारिकता नहीं होनी चाहिए, यह एक आंदोलन होना चाहिए। हमें अपनी भाषा के प्रति गर्व होना चाहिए और इसे आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।”
7. राहुल सांकृत्यायन
“हिंदी केवल एक भाषा नहीं है, यह भारत की आत्मा की भाषा है।” राहुल सांकृत्यायन ने हिंदी के विकास के लिए इसकी वैज्ञानिकता और व्यावहारिकता पर जोर दिया। उनका कहना था कि हिंदी को वैज्ञानिक और तकनीकी भाषा के रूप में भी समृद्ध करना जरूरी है।
8. विनोबा भावे
उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अपील करते हुए कहा था, “हिंदी हमारी आत्मा की भाषा है और इसका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है।”
9. हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन ने कहा था, “हिंदी हमारी जड़ों से हमें जोड़ती है, यह हमारी पहचान का अभिन्न हिस्सा है।” उन्होंने हिंदी साहित्य के माध्यम से इस भाषा को जनमानस के बीच लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया।
10. गांधी जी
महात्मा गांधी ने हिंदी के महत्व को समझाते हुए कहा था, “राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।” उनका मानना था कि हिंदी को अपनाकर ही देश में संचार और विचारों का आदान-प्रदान सुगमता से हो सकता है।
हिंदी दिवस पर इन विद्वानों की बातें हमें यह समझाती हैं कि हिंदी केवल संवाद का माध्यम नहीं है, यह हमारी संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। हमें हिंदी के समृद्धि और उसके प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।

डॉ दीपक प्रसाद
रंगकर्मी, निर्देशक, सहायक आचार्य,
शिक्षा संकाय
कार्तिक उरांव महाविद्यालय, गुमला

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