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विश्व ओज़ोन दिवस :: 16 सितम्बर

विश्व ओज़ोन दिवस या ‘ओज़ोन परत संरक्षण दिवस’ 16 सितम्बर को पूरे विश्व में यूनाइटेड नेशन जनरल असैंबली की तरफ़ से मनाया जाता है।

ozoneओज़ोन परत के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए पिछले दो दशक से इसे बचाने के लिए कार्य किए जा रहे हैं। लेकिन 23 जनवरी, 1995 को यूनाइटेड नेशन की आम सभा में पूरे विश्व में इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओज़ोन दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। उस समय लक्ष्य रखा गया कि पूरे विश्व में 2010 तक ओज़ोन फ्रेंडली वातावरण बनाया जाए। हालांकि अभी भी लक्ष्य दूर है लेकिन ओज़ोन परत बचाने की दिशा में विश्व ने उल्लेखनीय कार्य किया है। ओज़ोन परत को बचाने की कवायद का ही परिणाम है कि आज बाज़ार में ओज़ोन फ्रेंडली फ्रिज, कूलर आदि आ गए हैं। इस परत को बचाने के लिए जरूरी है कि फोम के गद्दों का इस्तेमाल न किया जाए। प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम हो। रूम फ्रेशनर्स व केमिकल परफ्यूम का उपयोग न किया जाए और ओज़ोन फ्रेंडली रेफ्रीजरेटर, एयर कंडीशन का ही इस्तेमाल किया जाए। इसके अलावा अपने घर की बनावट ओज़ोन फ्रेंडली तरीके से किया जाए, जिसमें रोशनी, हवा व ऊर्जा के लिए प्राकृतिक स्त्रोतों का प्रयोग हो।

ओज़ोन परत के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए पिछले दो दशक से इसे बचाने के लिए कार्य किए जा रहे हैं। लेकिन 23 जनवरी, 1995 को यूनाइटेड नेशन की आम सभा में पूरे विश्व में इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओज़ोन दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। उस समय लक्ष्य रखा गया कि पूरे विश्व में 2010 तक ओज़ोन फ्रेंडली वातावरण बनाया जाए। हालांकि अभी भी लक्ष्य दूर है लेकिन ओज़ोन परत बचाने की दिशा में विश्व ने उल्लेखनीय कार्य किया है। ओज़ोन परत को बचाने की कवायद का ही परिणाम है कि आज बाज़ार में ओज़ोन फ्रेंडली फ्रिज, कूलर आदि आ गए हैं। इस परत को बचाने के लिए जरूरी है कि फोम के गद्दों का इस्तेमाल न किया जाए। प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम हो। रूम फ्रेशनर्स व केमिकल परफ्यूम का उपयोग न किया जाए और ओज़ोन फ्रेंडली रेफ्रीजरेटर, एयर कंडीशन का ही इस्तेमाल किया जाए। इसके अलावा अपने घर की बनावट ओज़ोन फ्रेंडली तरीके से किया जाए, जिसमें रोशनी, हवा व ऊर्जा के लिए प्राकृतिक स्त्रोतों का प्रयोग हो।

आइए, हम भी इससे जुड़ी कुछ ख़ास बातें जानें और इसे बचाने की कोशिश करें।
ओज़ोन लेयर मोलीक्यूल्स से बनी है। इसके हर मोलीक्यूल में ऑक्सीजन के 3 एटम होते हैं। तभी तो इसका साइंटिफिक फॉमरूला 03 है। इसका रंग नीला होता है और इसमें बहुत तेज़ गंध आती है। सांस लेने के लिए हम जिस ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हैं, उसमें ऑक्सीजन के 2 एटम होते हैं। ओज़ोन से अलग आम ऑक्सीजन में न तो रंग होता है और न ही गंध। ओज़ोन आम ऑक्सीजन के मुक़ाबले दुर्लभ है। 10 मिलीयन हवा के मोलीक्यूल्स में लगभग 2 मिलीयन मोलीक्यूल्स आम ऑक्सीजन के होते हैं और केवल 3 ओज़ोन के। इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं कि ओज़ोन कितनी क़ीमती और ज़रूरी है।
धरती के वातावरण को कई परत में बांटा जाता है। सबसे निचली परत को ‘ट्रोपोस्फेयर’ कहा जाता है। यह ज़मीन से 10 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली है। ज़मीन का सबसे ऊंचा पहाड़ माऊंट एवरेस्ट भी ऊंचाई में केवल 9 किलोमीटर ही है। इंसानी जीवन के अधिकतर काम इसी परत में होते हैं। इसके बाद दूसरी परत ‘स्ट्रोटोस्फेयर’ कहलाती है। यह लेयर 10 किमी से 50 किमी तक फैली है। ओज़ोन परत भी इसी लेयर में होती है। ओज़ोन परत ज़मीन से लगभग 15-30 किमी की ऊंचाई पर होती है।
ओज़ोन परत सूर्य से आने वाले रेडिएशन को सोख लेती है और उसे ज़मीन पर पहुंचने ही नहीं देती। यह सूर्य से आने वाली अल्ट्रा-वायलेट किरण, यूवीबी को सोख लेती है। यूवीबी किरण इंसानी शरीर और वातावरण को कई तरह के नुक़सान पहुंचाती हैं। इनके कारण विभिन्न तरह के स्किन कैंसर, महाजलप्रताप, फसलों और पदार्थो को नुक़सान और समुद्री जीवन को हानी होती है।
ओज़ोन परत को नुक़सान पहुंचाने में सबसे बड़ा योगदान ‘क्लोरोफ्लोरोकार्बन’ या सीएफएस नाम की गैस का होता है। इस गैस के बढ़ते इस्तेमाल के कारण ओज़ोन को नुक़सान पहुंच रहा है। इस गैस का इस्तेमाल रैफ्रीजरेटर, झाग बनाने वाले एजेंट्स और कई दूसरे एप्लीकेशन्स में किया जाता है। इसके अलावा जो कंपाउंड्स टूटने पर क्लोरीन और ब्रोमीन बनाते हैं, वे भी ओज़ोन के लिए ख़तरा हैं। पर इसमें सबसे ज्यादा ख़तरनाक सीएफएस ही हैं, क्योंकि ये न तो पानी में मिलते हैं और न ही ख़त्म होते हैं।
सीएफएस एजेंट्स इतने शक्तिशाली होते हैं कि केवल स्ट्रॉन्ग यूवी रेडिएशन के संपर्क में आने पर ही टूटते हैं। जब ऐसा होता है, तो इनसे अटोमिक क्लोरीन रिलीज़ होती है। यह कितना हानिकारक है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक क्लोरीन एटम 1 लाख ओज़ोन मोलीक्यूल्स को तबाह कर देता है। नष्ट होने के मुक़ाबले इनका बनने की समयावधि बहुत ज्यादा है। हमारे वैज्ञानिक यह भी बताते हैं कि नाइट्रस ऑक्साइड, जिसे हम लाफिंग गैस के नाम से जानते हैं, भी ओज़ोन परत के लिए बड़ा ख़तरा है।
हम छोटे-छोटे कार्यों को करते हुए अपने इस सुरक्षा कवच को बनाए रख सकते हैं। यथा उन प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना होगा, जो ‘ओज़ोन-फ्रैंडली’ हों। अपने फ्रिज और एसी की समय-समय पर जांच करनी चाहिए। एसी या फ्रिज पुराना होने पर उसे री-साइकिल करनी चाहिए। अधिकाधिक पौध रोपण और संरक्षण करने होंगे, जिससे ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन पैदा होगी।
जहां तक हो सके, वाहनों का इस्तेमाल कम करें। इससे प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी।
गर्मियों में ख़ुद को ठंडा रखने के लिए हल्के कपड़े पहनना औऱ जितना हो सके, एसी का इस्तेमाल कम करना चाहिए।अगर लाइट की ज़रूरत न हो, तो उसे हम बंद रखें। सजावटी रोशनियों से परहेज़ करना आदि।

 

आलेख: कयूम खान, लोहरदगा।

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