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तकरीबन तीन करोड़ लोग नागपुरी भाषा का करते हैं प्रयोग : डॉ बीरेंद्र महतो

राची, झारखण्ड  | मार्च |  12, 2025 ::

नई दिल्ली में आयोजित एशिया का सबसे बड़ा साहित्योत्सव में लहराया नागपुरी का परचम

डॉ बीरेंद्र महतो ने कहा – नागपुरी स्वतंत्र व समृद्ध भाषा

• झारखंड से नागपुरी भाषा का डॉ बीरेंद्र कर रहें हैं प्रतिनिधित्व

रांची : नागपुरी भाषा झारखंड की सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा है। इस भाषा की मधुरता व सरलता के चलते भाषाविदों ने इसे “बाँसुरी की भाषा”, ” गीतों की रानी ” व ” मांदर की भाषा” कह कर सुशोभित किया है।

यह बातें जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय रांची विवि में नागपुरी विषय के सहायक प्राध्यापक डॉ बीरेंद्र कुमार महतो ने नई दिल्ली रवींद्र भवन में बुधवार को आयोजित कार्यक्रम साहित्योत्सव 2025 में कही। साहित्य अकादमी की ओर से 7 मार्च से 12 मार्च तक चलने वाले इस कार्यक्रम में डॉ बीरेंद्र झारखंड से नागपुरी भाषा का झारखंड राज्य से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। डॉ ने कहा कि 64वीं इस्वी में छोटानागपुर प्रांत के नागवंशी राजाओं ने नागपुरी भाषा को अपनी राजकाज की भाषा बनाया था। तब से लेकर 1947 तक नागपुरी झारखंड की राजभाषा बनी रही। अंग्रेजों व ईसाई मिशनरियों ने भी अपने धर्म प्रचार के लिए इसे अपनाया। कालांतर में इसे लिखने के लिए कैथी, बांग्ला, उड़िया, मराठी, रोमन व देवनागरी लिपि का प्रयोग किया गया। उन्होंने कहा कि भाषा विज्ञान की दृष्टिकोण से नागपुरी एक स्वतंत्र भाषा है। इसका आपना विपुल साहित्य, शब्दकोश व व्याकरण है। झारखंड के आलावा आसाम, पश्चिम बंगाल, नेपाल, उड़िया, बिहार, बांग्लादेश, व अंडमान तक क्षेत्र विस्तार है। वर्तमान में तकरीबन तीन करोड़ लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं, जो इसके पुकारू नाम यथा – सादरी, सदरी, गंवारी, नगपुरिया शब्द का प्रयोग करते हैं।

पठन-पाठन के साथ साथ डॉ बीरेंद्र ने नागपुरी व्याकरण और नागपुरी भाषा साहित्य से संबंधित कई पुस्तकों की भी रचना की है। साहित्योत्सव में उन्होंने कहा कि भाषा ही संस्कृति है और संस्कृति ही भाषा है। भाषा और संस्कृति का एक जटिल, समजातीय संबंध है। नागपुरी भाषा की उत्पत्ति और विकास के साथ साथ नागपुरी भाषा की महत्ता तथा क्षेत्र विस्तार और नागपुरी भाषा के नामकरण व लिखने के लिए समयांतर में प्रयोग किये गए लिपियों की यात्रा पर प्रकाश डाला। ‘‘साहित्योत्सव 2025’’, विश्व का सबसे बड़ा साहित्य उत्सव में 100 सत्रों में 50 से अधिक भाषाओं के लगभग 700 प्रतिनिधि हिस्सा लिया। सम्मेलन में झारखंड आंदोलनकारी, प्राध्यापक सह साहित्यकार बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो को भी आमंत्रित किया गया था, जिन्होंने आज अपनी बात रखी।

मौके पर डॉ महतो ने सात नागपुरी कविताओं “जागा झारखंडिया, पेयारा खंड, बेयाकुल आहयँ, चइल नि सकोना, बह तनी देइर, नावाँ उलगुलान एवं झारखंडक धरती महान” का पाठ किया। इस सत्र में नागपुरी भाषा के अलावा असमिया, मलयालम, पंजाबी, संस्कृत, तमिल व उर्दू भाषा के साहित्यकारों ने भी अपनी अपनी प्रस्तुति दी।

 

बताया कि कार्यक्रम में बहुभाषी कवि और कहानी-पाठ, युवा साहिती, अस्मिता, पूर्वोत्तरी जैसे नियमित कार्यक्रमों के अलावा भारत का भक्ति साहित्य, भारत में बाल साहित्य, भारत की अवधारणा, मातृभाषाओं का महत्व, आदिवासी कवि एवं लेखक सम्मिलन, भविष्य के उपन्यास, भारत में नाट्य लेखन, भारत की सांस्कृतिक विरासत, भारतीयों भाषाओं में विज्ञान कथा साहित्य, नैतिकता और साहित्य, भारतीय साहित्य में आत्मकथाएं, साहित्य और सामाजिक आंदोलन, विदेशों में भारतीय साहित्य जैसे अनेक विषयों पर परिचर्चा और परिसंवाद हुए।

 

 

 

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