राची, झारखण्ड | जुलाई | 17, 2023 ::
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के स्थानीय सेवा केन्द्र चौधरी बगान हरमू रोड रॉची एवं आर० आर० स्पोर्टिंग क्लब के तत्वावधान में सांई मंदिर (आर०आर० स्पोर्टिंग क्लब दुर्गा पूजा स्थान) रातू रोड में द्वादश ज्योर्तिलिंगम आध्यात्मिक दर्शन 16 दिवसीय मेला का आयोजन किया गया है।
दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए डा. प्रदिप कुमार गुप्ता, प्रोफेसर,
गॉसनर कॉलेज ने कहा एक ही यात्रा से 12 तीर्थयात्राओं के पुण्यफल की सहज प्राप्ति करने के लिए श्रावण के पावन महीने में दूर्गा मंदिर ( आर०आर० स्पोर्टिंग क्लब) रातू रोड के इस अध्यात्मिक मेले में अवश्य आना चाहिए।
शिव को मुक्तेश्वर और पापकटेश्वर कहा जाता है।
शिव आशुतोष हैं।
शिव परमात्मा जल्दी और सहज ही उच्च वरदान देने वाले हैं।
इसी भावना को लेकर शिव पर जल चढ़ाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। परंतु जीवन भर रोज शिव की पूजा करते रहने पर तथा हर वर्ष श्रद्धापूर्वक शिवरात्रि पर जागरण, व्रत इत्यादि करने पर भी मनुष्य के पाप और संताप क्यों नहीं
मिटते, उसे मुक्ति और शक्ति क्यों नहीं प्राप्त होती और उसे राज्य भाग्य का अमर वरदान नहीं मिलता।
आखिर शिव को प्रसन्न करने की सहज विधि क्या है।
इसके लिए हमें अपने मनोविकारों को दग्ध करने की आवश्यकता है।
विकारों को दग्ध करने में राजयोग का अभ्यास हमारी सहायता करता है।
सुमन सिहं, पुर्व अध्यक्ष, इनर व्हल क्लब, रॉची ने कहा श्रावण के महीने में विशेष रूप से सोमवार को शिव की पूजा की जाती है इसके पीछे का रहस्य यह है कि कलियुग के अंत में जब सभी नगुष्यात्मायें घोर अज्ञान में फंस कर दुखी हो जाते हैं तब परमात्मा धरती पर अवतरित हो ज्ञान रूपी सोम अथवा अमृत पिलाते हैं अर्थात ज्ञान की वर्षा करते है।
ज्योर्तिलिंगम के रूप में सोमनाथ, ऊँकारेश्वर मल्लिकार्जुन वैद्यनाथ महाकालेश्वर भीमेश्वर भुवनेश्वर केदारनाथ त्रयम्बकेश्वर, विश्वनाथ रामेश्वर एवं नागेश्वर परमात्मा शिव के सभी नाम कर्त्तव्यवाचक हैं।
ऐसा समय कलियुग का अंतिम चरण ही था जब लोग धर्म-भ्रष्ट और कर्म भ्रष्ट और योग भ्रष्ट हो जाते हैं और पशुओं के समान तुच्छ वुद्धि बन जाते हैं तब कलियुग के अंत में परमपिता परमात्मा शिव संसार का कल्याण करते हैं और सभी के दुखों को हर कर उन्हें सुख प्रदान करते हैं।
जिसके बाद सुख का युग सतयुग शुरू हुआ। ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के भी रचयिता होने के कारण त्रिमूर्ति तथा त्रयम्बकेश्वर कहलाते हैं।
शिव को एकनाथ, पशुपतिनाथ मुक्तेश्वर हर दुःखहर्ता, पापकटेश्वर अथवा संकटमोचन कहा जाता है।
स्पष्ट है कि उन्होंने यह कर्त्तव्य तब किया जब सभी नर-नारी पतित और माया की जंजीरों में जकड़े हुए पशुओं की तरह अज्ञानी बन्धे हुए अत्यंत दुखी हो जाते हैं और
वर्तमान में यही समय चल रहा है।
आज पुनः धर्म अति ग्लानि हो चुकी है। मानवमात्र का चारित्रिक, नैतिक और आध्यात्मिक पतन चरमसीमा पर पहुँच चुका है।
विज्ञान का अति विकास और जनसंख्या की अतिवृद्धि हो रही है। ऐसे समय कल्प की महानतम घटना और दिव्य संदेश सुनाते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है कि कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि के इस कल्याणकारी पुरूषोत्तम संगमयुम पर ज्ञान सागर, करूणा के सागर पतित पावन, सदा जागती ज्योत स्वयंभू परमात्मा शिव, हम जीवात्माओं की बुझी ज्योति को पुनः प्रज्वलित करने के लिए प्रजापिता ब्रह्मा के साकार,
साधारण, वृद्ध तन में दिव्य प्रवेश कर ज्ञान दे रहे हैं।
केन्द्र संचालिका ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन ने द्वादश ज्योर्तिलिंगम आध्यात्मिक दर्शन 16 दिवसीय मेले के उद्घाटन समारोह में कहा कि हर व्यक्ति को रातू रोड, दूर्गा मंदिर स्थित इस मेले में आकर अध्यात्मिक लाभ लेना चाहिए।
शिव पर तो अक धतूरा ही चढाया जाता है संकटमोचन महाकालेश्वर परमात्मा शिव ने मानवता के कल्याणार्थ हलाहल पान किया था।
आज वे पुनः सृष्टि पर विकारों का विषपान कर रहे हैं।
अतः आप भी जीवन में दुख अशांति पैदा करने वाले काम,
क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रूपी हलाहल विष को पतित पावन परमात्मा शिव को भेंट चढ़ा दें और स्वयं पावन बन मानव मात्र को पावन निर्विकारी बनाने का पान का बीड़ा उठावें।
फलस्वरूप आपको पूर्ण पवित्रता, सुख शांति का ईश्वरीय जन्मसिद्ध अधिकार अवश्य ही प्राप्त होगा।
द्वादश ज्योर्तिलिंगम आध्यात्मिक दर्शन मेले के उद्घाटन समारोह में बच्चों द्वारा नृत्य प्रस्तुत किया गया तथा वहां उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने झांकी का अवलोकन करने के बाद कहा कि द्वादश ज्योर्तिलिंगम की झांकी बहुत ही सुन्दर एवं रोचक होने के कारण सभी के लिए दर्शनीय है। यहां पर लगाई गई प्रदर्शनी से जीवन की अनेक समस्याओं का अध्यात्म के द्वारा समाधान करने की
प्रेरणा मिलती है। यह कार्यक्रम प्रतिदिन प्रातः 6.00 बजे से संध्या 7.00 तक चलता रहेगा।