ना चोरी का डर और ना छीनने की चिंता, इंसान का सबसे बड़ा धन “शिक्षा” : गुड़िया झा
एक कहावत है कि इंसान का सबसे बड़ा धन उसकी शिक्षा है। इसे बांटने से बढ़ता है।एक धनवान व्यक्ति सिर्फ अपने राज्य में पूजे जाते हैं लेकिन एक पढ़ा लिखा और विद्वान व्यक्ति हर जगह पूजनीय होते हैं।
शिक्षा हर व्यक्ति का बुनियादी अधिकार है। मगर आज भी कई हिस्सों में बच्चों को बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत ही संघर्ष करना पड़ रहा है। जिसका एक मुख्य कारण गरीबी और जागरूकता की कमी है। यह एक सार्वजनिक जिम्मेदारी भी है।
दिसंबर 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 24 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में घोषित किया। जिसका मुख्य उद्देश्य बेहतर शिक्षा सुधारों के लिए अभियान चलाने और सभी के लिए शिक्षा तक पहुंच में सुधार के लिए बनाया गया। शिक्षा सभी के जीवन को बेहतर बनाने का एक बहुत ही महत्वपूर्ण विकल्प है। यह व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता निर्धारित करती है। यह एक सभ्य जीवन जीने का अवसर प्रदान करती है। इसे और भी बेहतर बनाने के लिए हमारा एक छोटा सा कदम आने वाले समय में बदलाव की एक नई मंजिल बना सकता है।
यदि संभावनाओं के संसार में जीना हमारा ढंग हो जाता है, तो हम कह सकते हैं कि हम एक पूरी तरह से नया जीवन जी रहे हैं। जिसे हम नव-निर्मित जीवन जीना कहते हैं। नई संभावनाओं का सृजन करने के लिए हमें तीन आदतें छोड़नी होगी।
1, झूठे दिखावे की आदत को छोड़ना।
हम भारतीय इस मामले में विशेषकर बहुत आगे हैं। जो हम नही हैं, वही दिखाना चाहते हैं। हम खुश होने का ढोंग करते हैं लेकिन भीतर से हम दुखी होते हैं। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन यह निश्चित रूप से जरूरी है कि हम इस दुख को पहचानें और उससे बाहर निकलें। यदि हम “हीनभावना” और “हमारे पास बहुत अभाव है” की सोच से निकलें और रास्तों की ईमानदारी से खोज करें तो हमारी इस नई और सच्ची सोच की खुशी वास्तविक और प्रमाणिक होगी।
2, प्रमाणिक होने के क्षेत्र में बहुत कुछ करना होगा।
हम बड़े सपने देखते हैं, लेकिन हमारे कार्य लक्ष्य के अनुरूप नहीं होतें हैं। सामन्यतः हमारी कोशिश शॉर्टकट करने की रहती है और इसलिए हमारी अप्रमाणिकता दिख जाती है। तो नई संभावनाओं के उबरने के लिए हमें क्या करना होगा?
हम जो सोचते हैं, कहते हैं और करते हैं इसके बीच के अंतर को भरना होगा। एक बार जब हम प्रमाणिक हो जाते हैं, तो संभावनाओं का सृजन एक सहज घटना बन जाती है। हमें खुद को आलोचनाओं से भी बचाना होगा। हम बाहरी उपलब्धियों और दिखावे को बहुत अधिक महत्व देने लगे हैं। यदि हम अपनी आंतरिक और स्वाभाविक शक्तियों को देखें,तो हमें खुद के साथ पूरे देश का विकास भी स्पष्ट रूप से दिखने लगेगा।
3, अतीत को अतीत में ही रहने दें।
हम अतीत की बाध्यताओं या भविष्य की चिंताओं में डूबे रहते हैं। हम अपनी छोटी सोच के कारण भूत काल की बाधाओं को खड़ा करके भविष्य की गति को रोक देते हैं। अगर हम कल्पना करते हैं कि भविष्य हमारा महान होने जा रहा है, तो यह बात हमें वर्तमान काल में शक्ति और सामर्थ्य देती है। वास्तव में जीवन एक बड़ा खाली कैनवास है और अगर यह खाली है तो मुश्किल काम भी होने की संभावना बढ़ जाती है और यह सोच उसे सच्चाई में बदल देती है। जीवन अपने आप में “खाली और अर्थहीन है” इसमें हम जैसा चाहें , वैसा अर्थ भर सकते हैं। तो, क्यों न हम इस जीवन और इसमें घटने वाली घटनाओं को सार्थक और सशक्त अर्थ से भर दें?
इससे एक महान भविष्य का निर्धारण ही हमें वर्तमान में उसके अनुरूप कार्य करने की क्षमता प्रदान करता है।